परंपरा की दुहाई के कारण
छोटे मुंह खोल ना पाता हैं
जो बोलना चाहिए
वह बोल ना पाता हैं....
सत्य स्वर भी कभी-कभी
उचित समय में घोट लेता हैं
गलत को स्वीकार कर
तपस हृदय में भर लेता हैं
परंपरा की.....
बड़े , बड़ी ही चाव से
अपने वक्तव्य को रख देता हैं
झूठी शान को , बड़ी अदब से
ओढ़ सलोना चल देता हैं
परंपरा की.....
मान मर्यादा की जंजीरों में
जकड़े उसकी रोम-रोम रह जाता हैं
बेचारा उफ़ तक भी
करने से पहले घबराता हैं
परंपरा की.....
यह जुल्म नहीं तो और क्या है
यह आघात नहीं तो और क्या है
जो उसे अपने मन का करने को ना मिलता है
रोब , उसी पर रोज-रोज झड़ता है
परंपरा की.....
नाम :- संदीप कुमार
पता :- दियारी (मजगामा)
जिला :- अररिया (बिहार)
फोन नं :- 7549995604
जीमेल :- jisandeepkmandal@gmail.com
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