बुधवार, 13 जुलाई 2022

आत्मग्लानि में जीना - मरना पड़ता है


कौन अपराधी कौन स्वार्थी

ना जाने किसका क्या मंथन है

कौन भूख से पीड़ित कौन चोर

कौन किस मानसिकता से संकुचित है।।


थोड़े बहुत लोभ लालच में

मारते कौन किसको चाकू है

जो होते काम चोर और उचंगे

वह बनते अक्सर डाकू हैं।।


इसकी सजा इसके मानसिकता और कर्मों पर हो

मानव धर्म यही कहता है

ऐसे छोड़ देने से तो 

मनोबल इनके और बढ़ जाता है।।


नहीं मिली सजा तो बड़े बड़े घटना को अंजाम देते हैं

और फौलादी सीना चौड़ा कर यहां वहां घूमते हैं

किसी को भी डांट फटकार कर

कुछ भी हड़प कर धर ले आते हैं।।


लेकिन कुछ है कि जो यह न करना चाहते हैं

मजबूरी उसको खींच कर यही ले आते हैं

और ना चाहते हुए भी उसे यह करना पड़ता है

आत्मग्लानि में जीना - मरना पड़ता है।।


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

जिला :- अररिया (बिहार)

फोन नं :- 7549995604

जीमेल :- jisandeepkmandal@gmail.com

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