बेकरारी दिल में इतना की
बढ़ जाता मेरा कदम था
जेठ अषाढ़ का धुप भी
लगता मुझे नरम था।।
निकल जाते थे धर से बाहर
दिल ऐसा बदहाल था
प्यार की कहानी देखों
मन कितना बदहाल था
बेकरारी दिल में इतना की.....
सुनते ना थे किसी का हम
पर उसके आहट पर हाजीर था
जान निकल जाती थी मेरी
होता उससे कोई फ्रेंक
था
बेकरारी दिल में इतना की.....
मन करता था कत्ल कर दूं
बनता दिल इतना काफिढ़ था
प्यार में अंधे हम
थोड़ा सा फाजील था
बेकरारी दिल में इतना की.....
उसको सामने पा कर लगता
सब कुछ हमने पा लिया
कुछ खोया नहीं
चांद सितम सा गया
बेकरारी दिल में इतना की.....
उज्वल भविष्य की मनोकामना कर के
फुले ना हम समाते थे
धर तक बात पहुंचाने वाले पर
जुता तक बरसाते थे
बेकरारी दिल में इतना की.....
पर सामने घर पर पापा को पाकर
हो जाते मजबूर थे
प्रिये दोस्त हो या ना हो
दुश्मन लगता जरूर था
बेकरारी दिल में इतना की.....
नाम :- संदीप कुमार
पता :- दियारी (मजगामा)
जिला :- अररिया (बिहार)
फोन नं :- 7549995604
जीमेल :- jisandeepkmandal@gmail.com
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