दादा-दादी से नाना-नानी तक
सब का साथ मिला नादानी तक
अब नहीं रहा आश किसी का पानी तक।।
सब भुल गए हैं पढ़ कर एक कहानी की तरह
छोड़ दिए हैं घुलटने सब धड़े में पानी की तरह
कोई नहीं कोई नहीं उलट कर एक बार देखते हैं
जैसे छूटे हाथ,छूटे साथ वृक्ष से टहनी की तरह।।
जबकी ऐसा भी ना है हम बात ना सुनते हो जेठानी की तरह
अन देखा करते हो सबों को बचपन की शैतानी की तरह
फिर भी सब हाथ का छाया उठा लिया जैसे चक्रपाणि की तरह
यह कहानी है मेरी बचपन से सुख-दूख, राजा-रानी की तरह
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