बुधवार, 29 जून 2022

सब भुल गए हैं पढ़ कर एक कहानी की तरह छोड़ दिए हैं घुलटने सब धड़े में पानी की तरह कोई नहीं कोई नहीं उलट कर एक बार देखते हैं जैसे छूटे हाथ,छूटे साथ वृक्ष से टहनी की तरह


 बचपन से जवानी तक

दादा-दादी से नाना-नानी तक 

सब का साथ मिला नादानी तक

अब नहीं रहा आश किसी का पानी तक।।

Sandeep Kumar

सब भुल गए हैं पढ़ कर एक कहानी की तरह

छोड़ दिए हैं घुलटने सब धड़े में पानी की तरह

कोई नहीं कोई नहीं उलट कर एक बार देखते हैं

जैसे छूटे हाथ,छूटे साथ वृक्ष से टहनी की तरह।।


जबकी ऐसा भी ना है हम बात ना सुनते हो जेठानी की तरह

अन देखा करते हो सबों को बचपन की शैतानी की तरह

फिर भी सब हाथ का छाया उठा लिया जैसे चक्रपाणि की तरह

यह कहानी है मेरी बचपन से सुख-दूख, राजा-रानी की तरह

लच्छेदार बातों से वह उसे अच्छा मान चुका था झूठे किरदारों को वह सच्चा मान चुका था


 लच्छेदार बातों से वह

उसे अच्छा मान चुका था

झूठे किरदारों को वह

सच्चा मान चुका था।।

संदीप कुमार

जो चलते हैं गिरगिट की चाल

उसे कच्चा मान चुका था

हजारों विध्वंस किए जिसने

उसे बच्चा मान चुका था।।


नहीं है उसके दिल में खोट कोई

यह संदेश दे चुका था

अरे मत करो मतभेद किसी से

यह उपदेश दे चुका था।।


मिटाकर नफरत सारे

चलो कहते हैं हम एक हैं

अनेक हैं हम नेक है हम

6000 भाषा है पर एक है हम

चिल्ला चिल्ला कर कह चुका था।।


पर यह लगता अधूरा सत्य है

इसीलिए किसी का अस्मत लुटा है

हां फिर किसी का घर से सर

और इस दुनिया से रिश्ता टुटा हैं।।

मंगलवार, 28 जून 2022

कविता,कविता नहीं वह धड़कन की राज है क्या समझा यह दिल उसी की आवाज है।।

 कविता,कविता नहीं 

वह धड़कन की राज है

क्या समझा यह दिल

उसी की आवाज है।।

कविता और कुछ भी नहीं

पंक्ति में सजाने का अंदाज है

शब्द शब्द जोड़कर लिखा

अपना,अपना अंदाज है।।


क्या देखा यह नजर

उसी नजरिए का साज है

कविता और कुछ है ही नहीं

आत्मा की बाज है।।


जो उड़ते उड़ाते किसी अन्य लोगों में

कराते सैर स्व राज है

कविता के इसी विशिष्ट रूप को 

कहते दिव्य आत्मा और क्या बात है


जो उत्पन्न होते हैं मन मस्तिष्क में

कविता उसी का एहसास है

कविता तब कविता है

जब कविता देता अल्फाज है।।


कविता,कविता नहीं 

वह धड़कन की राज है

क्या समझा यह दिल

उसी की आवाज है।।


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

जिला :- अररिया (बिहार)

फोन नं :- 7549995604

जीमेल :- jisandeepkmandal@gmail.com

मोहब्बत है वतन से सच में या झुठा दावा करते हो शहर दर शहर धुआं धुआं कर वतन प्रेम का दिखावा करते हो

 मोहब्बत है वतन से सच में

या झुठा दावा करते हो 

शहर दर शहर धुआं धुआं कर

वतन प्रेम का दिखावा करते हो।।

संदीप कुमार


बात समझ में आती नहीं

या ना समझ का दिखावा करते हो

नव चैतन्य नव युवा को

षड्यंत्रों से गुमराह करते हो

देश के दौलत को आग के हवाले कर

कहीं किसी औरों से पूरा वादा करते हो

मोहब्बत है वतन से........


तोड़फोड़ खून खराबा कर

कितने को रुलाते तड़पाते हो

आंदोलन जोरदार शानदार हो

किसी को भी उठा ले आते हो

मधुर-मधुर वाणी से

किसी को भी फंसाते हो

मोहब्बत है वतन से........


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

जिला :- अररिया (बिहार)

फोन नं :- 7549995604

जीमेल :- jisandeepkmandal@gmail.com

शनिवार, 25 जून 2022

तुम भी हाथ बढ़ाओ हम भी हाथ बढ़ाते है पुराने गिले-शिकवे को नई दोस्ती से मिटाते हैं

 तुम भी हाथ बढ़ाओ

हम भी हाथ बढ़ाते है

पुराने गिले-शिकवे को

नई दोस्ती से मिटाते हैं।।

संदीप कुमार

किसी की जरूरत क्या

अपने फैसले अपने से सुनाते हैं

और अंतिम निर्णय पर

हम स्वैग पहुंच जाते हैं

तुम भी हाथ बढ़ाओ....


पुराने नोक झोंक को

अब हम-आप भुलाते हैं

नई राह नई पहचान

फिर से बनाते हैं

तुम भी हाथ बढ़ाओ....


इस दौड़ की जो जरूरत है

उस जरूरत में धुल-मील जाते हैं

दौड़ के अनुरूप ही

अपनों में ढल जाते हैं

तुम भी हाथ बढ़ाओ....



स्थिर पानी सा ना रुक कर

हम बहता पानी बन जाते हैं

परिवर्तन शील संसार में

परिवर्तन का उदाहरण बन जाते हैं

तुम भी हाथ बढ़ाओ.....


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

जिला :- अररिया (बिहार)

फोन नं :- 7549995604

जीमेल :- jisandeepkmandal@gmail.com

जिसे चाहता था दिल से वह ठुकरा दी तो,यार हम क्या करें औरों से फिर हम प्यार क्या करें......

 जिसे चाहता था दिल से 

वह ठुकरा दी तो,यार हम क्या करें

औरों से फिर हम

प्यार क्या करें......

Sandeep Kumar

यह दिल है कोई खिलौना नहीं

इसका कनेक्शन तार क्या करें

यह सामान थोड़ी ना है

जो हम व्यापार क्या करें

जिसे चाहा दिल.......


सब ख्वाब चूर चूर चकनाचूर हो गया

अब और इंतजार क्या करें

ऊपर से नीचे तक टूट चुका हूं

अब याद पुराना सार क्या करें

जिसे चाहा दिल.......


काट लेते हैं दिन भर हंसकर

किसी को गम का बू अंदाज ना लगे

रो लेते हैं छुपकर दो चार आंसू

किसी को पता यह हार का ना चले

जिसे चाहा दिल.......


यह सब चलता है सतरंग दुनिया है

उसे अब पुकार कर क्या करें

अब मय में डूब जाना चाहता हूं

यह नशे मन संसार क्या करें

जिसे चाहा दिल.......


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

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शुक्रवार, 24 जून 2022

परंपरा की दुहाई के कारण छोटे मुंह खोल ना पाता हैं जो बोलना चाहिए वह बोल ना पाता हैं....

 परंपरा की दुहाई के कारण

छोटे मुंह खोल ना पाता हैं

जो बोलना चाहिए

वह बोल ना पाता हैं....

संदीप कुमार

सत्य स्वर भी कभी-कभी

उचित समय में घोट लेता हैं

गलत को स्वीकार कर

तपस हृदय में भर लेता हैं

परंपरा की.....


बड़े , बड़ी ही चाव से

अपने वक्तव्य को रख देता हैं

झूठी शान को , बड़ी अदब से

ओढ़ सलोना चल देता हैं

परंपरा की.....


मान मर्यादा की जंजीरों में

जकड़े उसकी रोम-रोम रह जाता हैं

बेचारा उफ़ तक भी 

करने से पहले घबराता हैं

परंपरा की.....


यह जुल्म नहीं तो और क्या है

यह आघात नहीं तो और क्या है

जो उसे अपने मन का करने को ना मिलता है

रोब , उसी पर रोज-रोज झड़ता है

परंपरा की.....


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

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गुरुवार, 23 जून 2022

मोदी जी,हमारा यही हक चाहिए

मोदी जी,हमारा यही हक चाहिए

हमें तो हमारा छत चाहिए
ना ताज , ना महल चाहिए
दो वक्त खा लु पेट भर खाना
वह रोजगार वह लेटर चाहिए
मोदी जी.....
संदीप कुमार

बहुत धैर्य से पढ़े हैं बचपन से
उस धैर्य का हमें फल चहिए
निकालो भर्ती आठ साल बीत गया
और कितना तुम्हें वक्त चाहिए
मोदी जी.....

बिते सालों में कितनों का उम्र गया
कितनों का तुटा है आश
इस आश को विश्वास चाहिए
ना चाहिए फिजुल की बात
मोदी जी.....

बड़ी कष्ट होता है,कोई पुछता है,कब होगा नौकरी
सादी कब करेगा,बुढ़े में कौन देगा छोकरी
हंस कर टाल देते हैं लगी चोट को सहला लेते हैं
हम भी दे सके जवाब हमें भर्ती चाहिए
मोदी जी.....

नाम :- संदीप कुमार
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बुधवार, 22 जून 2022

वह शरारती है बहुत शरारत करती है दिन भर इधर-उधर और गप्पे लड़ाती है कुछ कहने पर ऐसे जैसे आग बबूला हो जाती है लगती दिन भर काम कर थके मरे सी आती है वह सरारती है.....

 वह शरारती है बहुत , शरारत करती है


वह शरारती है बहुत शरारत करती है

दिन भर इधर-उधर और गप्पे लड़ाती है

कुछ कहने पर ऐसे जैसे आग बबूला हो जाती है

लगती दिन भर काम कर थके मरे सी आती है

वह सरारती है.....

Sandeep Kumar

मेरे दिल की हर बात को वह समझती है

फिर भी जान बुझ कर हमसे उलझती है

ना चाहते हुए भी उलटफेर करती है

डाट सुनती हैं फिर हंस कर टाल देती है

वह सरारती है.....


बहलाने फुसलाने की प्रयास बड़ी चाव से करती है

वह इतनी तेज तर्रार है कि हमें भी बनाने की प्रयास करती है

कई बार हद से गुजर कर फिर शर्मिंदगी महसूस करती है

और फिर हंस कर मुस्कुरा कर चुप हो जाती है

वह सरारती है.....


वह बड़ी ही बदमाश भी है गलती कर 

दुबक कर चुप ना रह पाती है

और आकर हंस कर कहती हैं 

फिर धिरे से दबे पांव निकल जाती है

वह सरारती है.....


बन संवर कर इतराती इठलाती जवान लड़ाती है

मेरे गुस्से को ना जाने कैसे आने से रोक देती है

शायद वह अनोखी पिस है इसीलिए

मेरी ज्वा भी चलने से पहले उस पर इतराती है

वह सरारती है.....


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

जिला :- अररिया (बिहार)

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मंगलवार, 21 जून 2022

जब उसे पंछी की भांति उड़ने देगी

 वह चलती है तो चलने दे

राहों को भी बदलने दे

वह छोटी भोली भाली गुड़िया है

उसे डगर डगर पर मचलने दे।।

संदीप कुमार


उससे उसकी पंख खिलेगी

साहस और धैर्य बढ़ेगी

और आने वाली बाधाओं से 

तभी तो सहजता से लड़ सकेगी।।


और योग्य कुशल बलशाली होगी

आंखों में अंगार लिए बाधाओं से भिड़ेंगी

किसी को धीतकारते किसी को पुचकारते 

उच्च शिखर पर तभी तो चढ़ेगी।।


और नव नया नवेला सोला बनके

कभी झांसी तो कभी आग का गोला बनके

किसी से भी टक्कराने की साहस करेगी

जब उसे पंछी की भांति उड़ने देगी-२।।


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

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सोमवार, 20 जून 2022

गजब बेज्जती

गजब बेज्जती, 

इंतजार किए प्यार किए हम

संदीप कुमार मंडल

डोली में ले गया कोई और

निगाहे फाड़ कर हम देखते रह गए

सात फेरे लिया कोई और।।


गजब बेज्जती

गली का चक्कर लगाए शॉपिंग कराए हम

मांग भरा कोई और

हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें हम

हाथ पकड़ कर ले गया कोई और।।


गजब बेज्जती 

दिल लगाए दिल में बसाए हम

घर बसाया कोई और

मेहमान नवाजी करते रहे हम

मेहमान बन गया कोई और।।


गजब बेज्जती

साथ जीने मरने का कसमें खाए हम 

साथ जिने मरने लगा कोई और

वह सपना सारा सपना रहा

जिंदगी बन गया कोई और।।

जो कल तक हंसता था अगर आज वह मौन है

 जो कल तक हंसता था

आज अगर वह मौन है

Sandeep Kumarतो समझ जाना

इसका दिल हो गया गौन है।।


कोई उड़ा दी है निंद इसका

अब आता निंद नहीं निंद ढोंग है

उसका काया ना उसके साथ है

वह धूम रहा उस जोन में है।।


वह बेहोश मगरुर चुर चुर 

दिखता जैसे रोश में है

वह नशा ही ऐसा है कि 

रह पाता ना कोई होश में है।।


खो देता है सारा आलम

हो जाता बेहोश है

डेबिट क्रेडिट खाली कर देता 

तब आता होस में है।।


तब तक बहुत देर हो जाता 

खो जाता सारा आलम है

बन जाता बुद्धू भैया 

तब समझ में आता हम बालक है।।


नाम :- संदीप कुमार

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वह मगरुर है ऐसे प्यार में

 वह मगरुर है ऐसे प्यार में 

की उसे समझ ना आता अंतर

यार और रिश्तेदार में

❤👼❤👲❤❤❤
संदीप कुमार
Sandeep Kumar


बे लहजे बे हिचक

खोल देता चिट्ठी परिवार में

हया भी बेच आया

वह मुहब्बत के बाजार में।।


पहन कर पजामा लिए हाथ में कुर्ता

चलता सफर में सीना तान के

अडिग अटल है वह

अपने प्रतिष्ठा और स्वाभिमान में।।


आंच ना आने देता जरा सा

अपने निष्ठा के सम्मान में

सर झुकाता है वह बस

अपने प्यार के आन बान सान में।।


तनिक भी ना अंतर समझ आता उसे

अंधेरी रात और दिन के काम में

वह ऐसे सवार हुआ है

प्यार के नाव में।।


नाम :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

जिला :- अररिया (बिहार)

फोन नं :- 7549995604

jisandeepkmandal@gmail.com

तुम तुम हो हम हम हैं

 तुम तुम हो हम हम हैं

लेकिन ऐसा क्यों लगता

तुम्हारे बिना हम कम हैं।।


मोहब्बत के सफर में

चलते कई कदम है

तुम नहीं हो तो लगता

ये सफर बेदम हैं।।


आसिया खिला नभ में

नभ में न लगता हम हैं

सभी के चेहरे पर है मुस्कान

बस हमारे चेहरे पर ही गम है।।


अरे तुम ना हो तो यह

संदीप कुमार

जिंदगी लगता नर्क समान

भरे पुरे महफिल भी

लगता खाक समान।।


मैं मैं का जिंदगी में

मैं का ना हैं कोई काम

हम तुम साथ हो अगर तो

साथ हैं चारों धाम।।


ढूंढना ना होगा ईश्वर को

ईश्वर होगा मेरे धाम

मैं से हम की तरफ चलो

साथ होगा यह ब्रह्मांड।।


नाम. :- संदीप कुमार

पता :- दियारी (मजगामा)

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फोन नं :- 7549995604

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जब मिट जाती हैं पटवन से प्यास

 सूखकर भूमि किसान का पानी को हो जाते हैं त्रास्त तब जाकर बादल हैं आते जब मिट जाती हैं पटवन से प्यास।। अच्छी खासी आंधी भी साथ है लाते कर देते...